कर्मबंध

कुछ कर्म 7वें गुणस्थान में ही बंधते हैं जैसे अहारक-द्विक (शरीर+अंगोपांग),
इनका उदय 6 गुणस्थान में ।
इन कर्मों के बंध का कारण भी राग (संयम अवस्था में भी) ही है ।
पर ये कर्म और-और शुभ-प्रकृति-बंध में कारण होते हैं ।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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4 Responses

  1. कर्म का तात्पर्य जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है वह क़िया या कर्म होते हैं। यह भी तीन प्रकार के होते हैं, द़व्य, भाव और नो कर्म। गुण स्थान का मतलब मोह और योग के माध्यम से जीव के परिणामों में होने वाले उतार चढ़ाव होता है,इसको चौदह गुणस्थानों में विभाजित किया गया है।
    अतः उपरोक्त परिभाषाओं से, उक्त कथन सत्य है। बंध का कारण राग जो संयम अवस्था में भी होते हैं,पर यह कर्म और और शुभ प्रकृति में भी बंध के कारण होते हैं।

    1. आहारक-द्विक आदि कर्म ।
      और clear कर दिया है …
      “कुछ कर्म 7वें गुणस्थान में ही बंधते हैं जैसे अहारक-द्विक (शरीर+अंगोपांग),
      इनका उदय 6 गुणस्थान में ।
      इन कर्मों के बंध का कारण भी राग (संयम अवस्था में भी) ही है ।
      पर ये कर्म और-और शुभ-प्रकृति-बंध में कारण होते हैं ।”

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