क्षमा
कषाय की समय-सीमा होती है; क्षमा की नहीं, क्योंकि क्षमा तो आत्मा का स्वभाव है। इसीलिये पार्श्वनाथ भगवान का जीव 10 भवों तक कमठ के जीव को क्षमा करता रहा।
मुनि श्री सुधासागर जी
कषाय की समय-सीमा होती है; क्षमा की नहीं, क्योंकि क्षमा तो आत्मा का स्वभाव है। इसीलिये पार्श्वनाथ भगवान का जीव 10 भवों तक कमठ के जीव को क्षमा करता रहा।
मुनि श्री सुधासागर जी
2 Responses
जैन धर्म में अहिंसा परमोधर्म माना गया है, अतः क्षमा को उत्तम की श्रेणी में आता है,यह दशलक्षण का प़थम धर्म माना गया है। अतः जीवन में एक दुसरे से बैर की गठान में क्षमा भाव से गठानें समाप्त हो जाती है। अतः मुनि महाराज जी ने कहा है वह पूर्ण सत्य है कि कषाय की समय सीमा होती है लेकिन क्षमा की नहीं होती है क्योंकि यह आत्मा का स्वभाव होता है। इसलिए श्री पार्श्वनाथ भगवान का जीव दस भावों तक कमठ के जीव को क्षमा करते रहे थे ।
Bahut hi sundar bhav hain!!