क्या आचार्य श्री ज्ञानसागर जी ने ब्रह्मचारी अवस्था में अपने दीक्षा-गुरु आचार्य श्री वीर सागर जी को पढ़ाया था ।
आचार्य ज्ञानसागर जी से जब भी यह प्रश्न किया जाता था, वे इसका उत्तर नहीं देते थे ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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बहुमान का अर्थ आदर या सम्मान करना, मन को एक़ाग करके बड़े आदर से जिनवाणी का स्वाध्याय करना कहलाता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि चारित्र का बहुमान इन तीनों आचार्य जी ने अपने जीवन में किया है। अतः चारित्र बहुमान का कभी ज़बाब नहीं है ।
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बहुमान का अर्थ आदर या सम्मान करना, मन को एक़ाग करके बड़े आदर से जिनवाणी का स्वाध्याय करना कहलाता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि चारित्र का बहुमान इन तीनों आचार्य जी ने अपने जीवन में किया है। अतः चारित्र बहुमान का कभी ज़बाब नहीं है ।