ज़रूरत और ख्वाहिश
नंगे पाँव चलते “इन्सान” को लगता है
कि “चप्पल होती तो कितना अच्छा होता”
फिर ऐसा लगा कि………
“कार होती तो धूप नहीं लगती”
फिर लगा कि,
“हवाई जहाज होता तो इस ट्रैफिक का झंझट नहीं होता”
जब हवाई जहाज में बैठकर नीचे हरे-भरे घास के मैदान देखता है तो सोचता है कि,
“नंगे पाव घास में चलता तो दिल को कितनी तसल्ली मिलती !”
(जे.पी.शर्मा)
3 Responses
Insaan desires ka putla hai, jo endless hain. The best way to end the chain is to derive satisfaction from things available.
इंसान का स्वभाव है ,जो वस्तु हमारे पास नहीं है ,हम उसकी कल्पना करते हैं,और ऊंची उडान भरते हैं ,अपेक्षा से ।
सच मानिए तो यही अपेक्षा ,हमें दुख देती है ।
हम वर्तमान में जिऐं और जो हमारे पास है उसी में संतुष्ट रहें ,और सोचें कि ईश्वरीय कृपा से हमें इतना ,तो मिला ।
अपने भाग्य से अधिक किसी को नहीं मिलता । बहुत अच्छा और दिशाबोधक संदेश है।
आदरणीय शर्मा जी को मै प्रणाम करती हूँ।
अरुणा जैन
Very well said, Aunty!!!!