प्रवृत्तिरूप दया छ्ठे गुणस्थान तक,
निवृत्तिरूप सिद्ध भगवान में भी (किसी को बाधा नहीं) ।
मुनि श्री सुधासागर जी
Share this on...
One Response
दया का मतलब दीन दुखी जीवों के प्रति अनुग्रह या उपकार का भाव होना दया या करुणा है।
गुणस्थान– मोह और योग के माध्यम से जीव के परिणामों में होने वाले उतार चढ़ाव को गुणस्थान कहते हैं। जीवों के परिणाम अनन्त है, परन्तु उन सभी को चौदह श्रेणियों में विभाजित किया गया है। अतः जीवन में जैन धर्म में दया का भाव बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। अतः प़वृति रुप छ्ठे गुणस्थान तक होता है जबकि सिद्ध भगवान् में निवृत्ति रुप होता है, इसमें किसी को बाधा नहीं है।
One Response
दया का मतलब दीन दुखी जीवों के प्रति अनुग्रह या उपकार का भाव होना दया या करुणा है।
गुणस्थान– मोह और योग के माध्यम से जीव के परिणामों में होने वाले उतार चढ़ाव को गुणस्थान कहते हैं। जीवों के परिणाम अनन्त है, परन्तु उन सभी को चौदह श्रेणियों में विभाजित किया गया है। अतः जीवन में जैन धर्म में दया का भाव बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। अतः प़वृति रुप छ्ठे गुणस्थान तक होता है जबकि सिद्ध भगवान् में निवृत्ति रुप होता है, इसमें किसी को बाधा नहीं है।