दर्शन और मन:पर्यय

जैसे श्रुतज्ञान से पहले दर्शन नहीं होता, क्योंकि श्रुतज्ञान मति पूर्वक ही होता है और मति से पहले दर्शन होता ही है ।
ऐसे ही मन:पर्यय से पहले दर्शन नहीं होता क्योंकि मन:पर्यय, मति (ईहा) पूर्वक ही होता है ।

चिंतन

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