अरहंत भगवान की वाणी बिना गणधर के नहीं खिरती,
सिद्ध बिना धर्म-द्रव्य के चल कर नहीं गये थे ।
(ठहरे भी अधर्म द्रव्य के निमित्त से ही हैं)
मुनि श्री सुधासागर जी
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निमित्त कारण- -जो कार्य के होने में सहयोगी हो या जिसके बिना कार्य न हो उसे कहते हैं, कुछ निमित्त कार्य द़व्य आदि के समान उदासीन होते हैं और कुछ गुरु आदि के समान प्रेरक भी होते हैं अतः उचित निमित्त के होने पर तदानुसार ही कार्य होता है। अतः उक्त कथन सत्य है कि अरहन्त भगवान् की वाणी बिना गणधर के नहीं खिरती है,सिद्व बिना धर्म द़व्य के चल कर नहीं गये थे, लेकिन उचित निमित्त के कारण ही अरहन्त भगवान् की वाणी खिर पाई थी।
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निमित्त कारण- -जो कार्य के होने में सहयोगी हो या जिसके बिना कार्य न हो उसे कहते हैं, कुछ निमित्त कार्य द़व्य आदि के समान उदासीन होते हैं और कुछ गुरु आदि के समान प्रेरक भी होते हैं अतः उचित निमित्त के होने पर तदानुसार ही कार्य होता है। अतः उक्त कथन सत्य है कि अरहन्त भगवान् की वाणी बिना गणधर के नहीं खिरती है,सिद्व बिना धर्म द़व्य के चल कर नहीं गये थे, लेकिन उचित निमित्त के कारण ही अरहन्त भगवान् की वाणी खिर पाई थी।