नियति / पुरुषार्थ
फ़ेल होने को (घटना घटने के बाद) नियति मानना, वरना अवसाद में घिर जाओगे।
पास होने को भी भाग्य मानना, वरना घमंड आ जायेगा।
पर पढ़ाई के समय नियति को भूल जाना।
सोचना, “जो मैं करूँगा, वही परिणाम आयेगा।”
मुनि श्री सुधासागर जी
फ़ेल होने को (घटना घटने के बाद) नियति मानना, वरना अवसाद में घिर जाओगे।
पास होने को भी भाग्य मानना, वरना घमंड आ जायेगा।
पर पढ़ाई के समय नियति को भूल जाना।
सोचना, “जो मैं करूँगा, वही परिणाम आयेगा।”
मुनि श्री सुधासागर जी
One Response
नियति का तात्पर्य जीव के द्वारा बांधे गए कर्म का उत्कर्षण या अपकर्षण तो संभव है पर संक्रमण होना संभव नहीं है। इतना अवश्य है कि जिनबिम्ब के दर्शन से कर्मों का नियतिकर हो जाता है।
पुरुषार्थ का मतलब चेष्टा या प़यास करना होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि फेल होना यानी घटना घटित हो जाने को नियति मानना,वरना डिप्रेश हो जाओगे। जबकि पास होने को भाग्य मानना,वरना घमंड आवेगा,पर पढ़ाई के समय नियति को भूल जाना,उस समय सोचना जो मैं करुंगा,वही परिणाम आवेगा। अतः जीवन में नियति की जगह पुरुषार्थ करना परम आवश्यक है ताकि उत्तम परिणाम मिल सकता है।