पाप-कर्म भी पुण्य के उदय में ही होते हैं।
जैसे 7वें नरक जाने के लिये, वज्रवृषभ-नाराच-संहनन चाहिये, जो बड़े पुण्य से ही मिलता है।
मुनि श्री सुधासागर जी
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पाप का मतलब जो आत्मा को शुभ से बचाए अथवा दूसरों के प्रति अशुभ परिणाम होना ही पाप है। पुण्य का मतलब तो आत्मा को पवित्र करता है या जिससे आत्मा पवित्र होती है।जीव के दया, पूजा आदि शुभ परिणमन करते हैं। उपरोक्त कथन सत्य है कि पाप कर्म भी पुण्य के उदय में ही होते हैं। अतः उपरोक्त उदाहरण भी सत्य है। जीवन में पुण्य की प्राप्ति करना चाहिए ताकि अगला भव अच्छा होता सकता है। अतः जीवन को पुण्य बनाने का प्रयास करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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पाप का मतलब जो आत्मा को शुभ से बचाए अथवा दूसरों के प्रति अशुभ परिणाम होना ही पाप है। पुण्य का मतलब तो आत्मा को पवित्र करता है या जिससे आत्मा पवित्र होती है।जीव के दया, पूजा आदि शुभ परिणमन करते हैं। उपरोक्त कथन सत्य है कि पाप कर्म भी पुण्य के उदय में ही होते हैं। अतः उपरोक्त उदाहरण भी सत्य है। जीवन में पुण्य की प्राप्ति करना चाहिए ताकि अगला भव अच्छा होता सकता है। अतः जीवन को पुण्य बनाने का प्रयास करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।