पूजक / पूज्य
पूजक, पूज्य की पूजादि करके ख़ुद फलीभूत होते हैं, पर जब पूज्य पूजक के निमित्त से फलीभूत हों तब पूजक का पुण्य अक्षय रहेगा।
पर हम तो पूज्य की पूजा करके उसे गंदा करके छोड़ आते हैं जैसे सोला के कपड़ों को गंदा करके छोड़ आते हैं।
यदि हम सुधर नहीं रहे तो कम से कम पुजारी न कहलवायें ताकि पूजा और पूज्य बदनाम न हों।
मुनि श्री सुधासागर जी
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पूजा का मतलब पंचमेष्ठी के गुणों का चिंतवन करना होता है,यह अष्ट द़व्य से की जाती है, इसके साथ अभिषेक एवं शान्तीधारा यह सब हर्ष एवं प्रसन्नता पूर्वक करना आवश्यक है ताकि पुण्य की प्राप्ति हो। उपरोक्त कथन सत्य है कि कुछ लोग पूजा के बाद अशुद्धि फैलाते हैं, जैसे पूजा के बाद अपने शोला के कपड़े स्वयं ही साफ करना आवश्यक है, इसके साथ पूजन की द़व्य भी अपने हाथों से बनाना चाहिए ताकि जीवन में पुण्य का फल अवश्य मिलता है। अतः जीवन में पूजा एवं पूज्य बदनाम नहीं हो सके।
Can meaning of “पूजक, पूज्य की पूजादि करके ख़ुद फलीभूत होते है” be explained, please ?
पूजक(पूजा करने वाला) के द्वारा पूज्य (जिसकी पूजा की जाती है) की पूजा करने से पूजक को फल मिलता है।
Okay.