पहली भावनाओं से मन शांत होता है, तभी तो “धर्म” प्रवेश कर पायेगा !
मुनि श्री अविचलसागर जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि बारह भावनाओं में प़थम भावना अनित्य भावना करने से मन शांत होने लगता है, जिसके उपरांत अन्य भावनाओं को पढ़कर धर्म की और बढ़ने लगते हैं, धर्म भावना अहिंसा परमोधर्म कहा गया है। अतः जीवन में इन भावनाओं को हृदय में विराजमान करने पर अपना कल्याण हो सकता है।
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उपरोक्त कथन सत्य है कि बारह भावनाओं में प़थम भावना अनित्य भावना करने से मन शांत होने लगता है, जिसके उपरांत अन्य भावनाओं को पढ़कर धर्म की और बढ़ने लगते हैं, धर्म भावना अहिंसा परमोधर्म कहा गया है। अतः जीवन में इन भावनाओं को हृदय में विराजमान करने पर अपना कल्याण हो सकता है।