मतिज्ञान प्राय: अकेला नहीं होता क्योंकि अकेले का कोई महत्व/फल नहीं होता है ।
पर श्री धवला जी/तत्वार्थसूत्र की टीका/आ. श्री विद्यासागर जी ने अकेला भी माना है ।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
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मतिज्ञान-इन्द़िय व मन की सहायता से होने वाला ज्ञान होता है।यह भी कथन सही है कि मतिज्ञान प़ायः अकेले नहीं होता है लेकिन आ.श्री विद्यासागर महाराज जी ने अकेला भी माना है।मेरे अनुसार उनका वचन सत्य है ।
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मतिज्ञान-इन्द़िय व मन की सहायता से होने वाला ज्ञान होता है।यह भी कथन सही है कि मतिज्ञान प़ायः अकेले नहीं होता है लेकिन आ.श्री विद्यासागर महाराज जी ने अकेला भी माना है।मेरे अनुसार उनका वचन सत्य है ।