मन

औकात/महत्व मूल्य से आंका जाता है –
सोना व पीतल दोनों पीले, पर सोना तिजोरी में, पीतल का पीकदान।
मन का मूल्यांकन करें –
सम्यग्दर्शन मन वालों को ही होता।
इसलिये साधु मनोगुप्ति करते हैं –
मन को तिजोरी में छिपाकर ही नहीं, सबसे छिपाकर रखते हैं।

मुनि श्री सुधासागर जी

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One Response

  1. मन का तात्पर्य नाना प्रकार के विकल्प जाल को कहते हैं, अथवा गुण दोष का विचार व स्मरण आदि करने का कार्य होता है। सम्यग्दर्शन का मतलब सच्चे देव शास्त्र गुरु के प़ति श्रद्वान होना चाहिए। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि मन से औकात एवं महत्त्व/ मूल्य आंका जाता है। जबकि सम्यग्दर्शन मन वालों को होता है, इसलिए साधु मनोगुप्ति रखते हैं,मन को तिजोरी में छिपाकर ही नहीं रखते हैं, लेकिन वह मन को सबसे छुपा कर रखते हैं।

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