निश्चय से तो निगोदिया और भगवान एक, पर मंदिर में निगोदिया की मूर्ति नहीं, यह व्यवहार है ।
आ. श्री – निश्चय से तो सुबह और शाम की लाली एक सी, पर सुबह की पुण्य-रूप, जगाती है; शाम की पाप-रूप सुलाती है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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निश्चय और व्यवहार में यही अंतर है कि निगोदिया और भगवान में सिर्फ भगवान की ही मूर्ति को स्थापति कर सकते हैं इसी को व्यवहार कहते हैं।
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निश्चय और व्यवहार में यही अंतर है कि निगोदिया और भगवान में सिर्फ भगवान की ही मूर्ति को स्थापति कर सकते हैं इसी को व्यवहार कहते हैं।