व्रत – बाह्य, कुछ का, पापों से निवृति के लिए,
मुख्य लाभ पुण्य;
संयम – आंतरिक, वृहत क्षेत्र, मुख्य लाभ निर्जरा ।
सकल संयम – महाव्रत – 5 पापों से पूर्ण निवृत्ति ।
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4 Responses
सत्य-राग,द्वेष या मोह से प्रेरित सब प्रकार के झूठे वचनों का त्याग करना आगम के अनुसार महाव़त होता हैं।
स्थूल झूठ का त्याग करना और जीवों का घात करने वाले सत्य वचन भी नहीं बोलना सत्य अणुव्रत है।
संयम-व़त व समिति का पालन करना,मन वचन के अशुभ प्रवृत्ति का त्याग करना तथा इन्द्रियों को वश में रखना सत्य धर्म है। अतः व़त बाह्म, कुछ का, पापों से निवृत्ति,मुख्य पुण्य होता है लेकिन संयम आंतरिक, वृहत, निर्जरा होती हैं और सकल संयम वृहत और महाव़त से पांच पापों से पूर्ण निवृत्ति होती हैं।
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सत्य-राग,द्वेष या मोह से प्रेरित सब प्रकार के झूठे वचनों का त्याग करना आगम के अनुसार महाव़त होता हैं।
स्थूल झूठ का त्याग करना और जीवों का घात करने वाले सत्य वचन भी नहीं बोलना सत्य अणुव्रत है।
संयम-व़त व समिति का पालन करना,मन वचन के अशुभ प्रवृत्ति का त्याग करना तथा इन्द्रियों को वश में रखना सत्य धर्म है। अतः व़त बाह्म, कुछ का, पापों से निवृत्ति,मुख्य पुण्य होता है लेकिन संयम आंतरिक, वृहत, निर्जरा होती हैं और सकल संयम वृहत और महाव़त से पांच पापों से पूर्ण निवृत्ति होती हैं।
“वृहत” ka kya meaning hai please?
वृहत = बड़े/ विशाल
Okay.