शिथिलाचारिता 2 प्रकार की –
1. वैचारिक – दूसरों के लिये घातक नहीं ।
2. वैचारिक के साथ साथ चारित्रिक भी, शिथिलाचारिता को ही मोक्षमार्ग मानने/बताने लगें – सबके लिये घातक ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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उक्त कथन सत्य है कि शिथिलाचारि दो प्रकार के होते हैं, वैचारिक और चारित्रिक। जिसमें वैचारिक दूसरों के लिए घातक नहीं होते हैं। लेकिन वैचारिक के साथ साथ चारित्रिक भी होने पर तो शिथिलाचारिता को ही मोक्षमार्ग मानने और बताने लगे तो सब के लिए घातक होते हैं। अतः जीवन में दोनों प़कार के शिथिलाचारिता से बचना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।
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उक्त कथन सत्य है कि शिथिलाचारि दो प्रकार के होते हैं, वैचारिक और चारित्रिक। जिसमें वैचारिक दूसरों के लिए घातक नहीं होते हैं। लेकिन वैचारिक के साथ साथ चारित्रिक भी होने पर तो शिथिलाचारिता को ही मोक्षमार्ग मानने और बताने लगे तो सब के लिए घातक होते हैं। अतः जीवन में दोनों प़कार के शिथिलाचारिता से बचना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।