संकोच
सबसे बड़ा ऐव संकोच है,
यही हमारे कल्याण में बाधक है ।
यह आता है, इस भाव से कि – हम सबको प्रसन्न रखें ।
पर हम भूल जाते हैं कि – ना हम किसी को प्रसन्न रख सकते, ना नाराज़,
सब अपने अपने कर्मोदय से सुखी-दुखी होते हैं ।
क्षु. गणेशप्रसाद वर्णी जी
2 Responses
Good.
HariBol.
Jai Jinendra,
Very useful..yadi aaj hum iss baat ko jiwan mein samaj le to Shantinaath bhagwan ka moksh kalyank manana bhi sarthak ho jayega..aur jiwan mein shanti hi shanti hogi…………..