मिथ्यादृष्टि – सिर्फ भूसा चाहता है,
सराग सम्यग्दृष्टि – गेंहू + भूसा चाहता है,
वीतराग सम्यग्दृष्टि – मात्र गेंहू चाहता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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सम्यग्दृष्टि-जो सम्यग्दर्शन,सम्यग्कज्ञान और सम्यकचारित्र को जानता हो उसे कहते हैं,जो नहीं जानता हो वह मिथ्यादऋष्टि होता है। अतः यह कथन सत्य है कि मिथ्याद्ष्टि-सिर्फ भूसा चाहता है,सराग सम्यग्द्वष्टि-गेंहू और भूसा चाहता है और वीतराग सम्मग्दृष्टि-जो मात्र गेंहू चाहता है। अतः जीवन में जो वीतरागी सम्यग्दृष्टि के भाव होते हैं वहीं मोक्ष को प्राप्त कर सकता हैं।
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सम्यग्दृष्टि-जो सम्यग्दर्शन,सम्यग्कज्ञान और सम्यकचारित्र को जानता हो उसे कहते हैं,जो नहीं जानता हो वह मिथ्यादऋष्टि होता है। अतः यह कथन सत्य है कि मिथ्याद्ष्टि-सिर्फ भूसा चाहता है,सराग सम्यग्द्वष्टि-गेंहू और भूसा चाहता है और वीतराग सम्मग्दृष्टि-जो मात्र गेंहू चाहता है। अतः जीवन में जो वीतरागी सम्यग्दृष्टि के भाव होते हैं वहीं मोक्ष को प्राप्त कर सकता हैं।