जीवन में सुख और दुःख तो होता रहता है लेकिन यह दोनों बाहरी रुप हैं। सुख तो भोगों के द्वारा भी होता है, लेकिन इसमें पाप के भागीदारी होती है।
उपरोक्त कथन सत्य है कि सुख के लालच में ही नये दुख का जन्म होता है। अतः जीवन में सुख और दुख होता है,उसको सहजता से स्वीकार कर लेना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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जीवन में सुख और दुःख तो होता रहता है लेकिन यह दोनों बाहरी रुप हैं। सुख तो भोगों के द्वारा भी होता है, लेकिन इसमें पाप के भागीदारी होती है।
उपरोक्त कथन सत्य है कि सुख के लालच में ही नये दुख का जन्म होता है। अतः जीवन में सुख और दुख होता है,उसको सहजता से स्वीकार कर लेना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।