उत्तम मार्दव

मार्दव यानी मान का उल्टा/ मृदुलता।
मनुष्य पर्याय में मान की बहुलता होती है जैसे जानवरों में मायाचारी की।
कैसे प्राप्त करें मार्दव ? करता बुद्धि कम करके।
मान किस बात का ? पैदा कोई करता है, परवरिश कोई, संबंध दूसरों से होता है और अंतिम यात्रा भी दूसरे कराते हैं। सब कुछ नश्वर है।
मानी…आई एम एवरीथिंग, थोड़े सुधरे तो कहते हैं “आई एम समथिंग” पर जब मार्दव धर्म आता है तो कहते हैं “आई एम नथिंग”
पक्षी को उड़ने के लिए पंख चाहिए मनुष्य को झुकने से ऊँचाईयाँ मिलती हैं(गलतफहमी है कि झुकाने से)
मान 8 तरह का होता है… ज्ञान, पूजा, प्रसिद्धि, कुल, जाति, ऋद्धि, तप और रूप का।
स्वाभिमान स्वयं में समाहित होना है। स्वाभिमान के पीछे छुपकर हम मान करते हैं।

आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी

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7 Responses

  1. उत्तम मार्दव का तात्पर्य अपने अहंकार या घमंड को हमेशा के लिए गलाना परम आवश्यक है। अतः अपने मान आदि की कोशिश नहीं करना चाहिए बल्कि समता का भाव रखना परम आवश्यक है।

  2. Footnote me ‘प्रसिद्धि’ aur ‘ऋद्धि’ kyun diya gaya hai ? Ise clarify karenge, please ?

  3. ‘स्वाभिमान स्वयं में समाहित होना है।’ Is statement ka meaning clarify karenge, please ?

    1. मान दूसरों के साथ होता है/ बाहर दिखता है। स्वाभिमान स्वयं में होता है/ अंदर रहता है।

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