सम्यक्/मिथ्या दृष्टि

भव-सागर में अनंत से बहते-बहते जिसकी दृष्टि “छोर” पर हो जाती है, वह सम्यग्दृष्टि ।
जिसकी “और-और” पर, वह मिथ्यादृष्टि ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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2 Responses

  1. सम्यग्दर्शन चैत, गुरु और शास्त्र की पूजा करना अथवा श्रद्वा रखना होगा। मिथ्याद्रष्टि का तात्पर्य जो दोष युक्त देव हिंसा में युक्त धर्म का और परिग़ह से लिप्त गुरु का आदर सत्कार करता है।
    अतः आचार्य श्री का कथन सत्य है कि भव सागर में बहते बहते उसकी द्रष्टि छोर तक हो जाती है,वह सम्यग्द्वष्टि होता है जबकि जिसकी द्वष्टि और और पर होती है वह मिथ्याद्रष्टि कहा गया है।

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