अभीक्ष्ण-ज्ञानोपयोग
जो संवर का आदर तथा निर्जरा की इच्छा करता है, वह आत्मरसिक अभीक्ष्ण-ज्ञानोपयोग को जानता/ उसके निकट रहता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तिथ्य भा.– गाथा– 26)
जो संवर का आदर तथा निर्जरा की इच्छा करता है, वह आत्मरसिक अभीक्ष्ण-ज्ञानोपयोग को जानता/ उसके निकट रहता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तिथ्य भा.– गाथा– 26)
3 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने अभीक्षण ज्ञानोपयोग को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है ।
‘आत्मरसिक’ ka kya meaning hai, please ?
जिन्हें आत्मा में रस आता हो।