उदीरणा
आचार्य श्री के अनुसार :- सामान्यतः कर्मों की दसवें गुणस्थान तक उदय, सत्ता, उदीरणा चलती रहती है । यह नियम है अन्यथा उदय कार्यकारी नहीं होता जैसे सुई में धागा थूक ( उदीरणा ) के साथ ही पिरोया जाता है ।
कुछ परिस्थितियां अपवाद हैं जैसे बारहवें गुणस्थान के अंत में ज्ञानावरण आदि की एक आवली पहले तक उदीरणा होगी, अंत में नहीं क्योंकि आगे कर्म बचे ही नहीं तो उदीरणा कैसे होगी ।
श्री रतनलाल बैनाडा जी