निर्विचिकित्सा
घृणा न होने से तथा अपितु वस्तु के स्वरूप को ध्यान रखने से कर्म-बंध नहीं होता, पर निर्जरा होती है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी (समयसार-246 )
घृणा न होने से तथा अपितु वस्तु के स्वरूप को ध्यान रखने से कर्म-बंध नहीं होता, पर निर्जरा होती है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी (समयसार-246 )