पुरुषार्थ / भाग्य
कहते हैं – उतने पैर पसारिये, जितनी चादर होय, वरना मच्छर काटेंगे ।
तो क्या भाग्य के भरोसे पैर सिकोड़कर ही पड़े रहें ?
नहीं, चादर को लंबा करने का पुरुषार्थ करने से किसने मना किया !
कहते हैं – उतने पैर पसारिये, जितनी चादर होय, वरना मच्छर काटेंगे ।
तो क्या भाग्य के भरोसे पैर सिकोड़कर ही पड़े रहें ?
नहीं, चादर को लंबा करने का पुरुषार्थ करने से किसने मना किया !
One Response
पुरुषार्थ का मतलब चेष्टा या प़यत्न करना होता है।पुरुषार्थ चार प़कार के होते हैं ।धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पुरूषार्थ होते हैं।भाग्य कर्मो के आधार पर निर्मित होते हैं।अतः भाग्य में बदलाव करने के लिए इनमे से पुरुषार्थ करना आवश्यक है।मोक्ष के लिए धर्म पुरुषार्थ करना चाहिए।शेष पुरुषार्थ संसार बढाने के लिए होते हैं।