समवसरण के वैभव को देखकर वैभव छोड़ने के भाव आते हैं ।
जैसे आग तो जलाती है पर चिराग/सूर्य प्रकाश देते हैं ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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समवसरण—तीर्थंकर की धर्म सभा को कहते हैं। जहां समस्त स्त्री, पुरुष,पशु पक्षी और देवी देवता समान भाव से भगवान का उपदेश सुनते हैं अथवा जहां सभी भव्य जीव तीर्थंकर की दिव्यध्वनि के अवसर की प्रतीक्षा करते हैं वह समवसरण है।सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से कुबेर के द्वारा योग्य समवसरण की रचना की जाती है।
यह कथन सत्य है कि समवसरण के वैभव को देखकर वैभव छोड़ने के भाव आते हैं। उसी प्रकार आग जलाती है पर चिराग और सूर्य प़काश देते हैं।
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समवसरण—तीर्थंकर की धर्म सभा को कहते हैं। जहां समस्त स्त्री, पुरुष,पशु पक्षी और देवी देवता समान भाव से भगवान का उपदेश सुनते हैं अथवा जहां सभी भव्य जीव तीर्थंकर की दिव्यध्वनि के अवसर की प्रतीक्षा करते हैं वह समवसरण है।सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से कुबेर के द्वारा योग्य समवसरण की रचना की जाती है।
यह कथन सत्य है कि समवसरण के वैभव को देखकर वैभव छोड़ने के भाव आते हैं। उसी प्रकार आग जलाती है पर चिराग और सूर्य प़काश देते हैं।