सत्य
स्वयं कानों से सुना, आँखों से देखा भी अपने मुँह से मत कहना,
क्योंकि (पूर्ण) सत्य ना तो कहा जा सकता है,
ना ही देखा जा सकता है ।
स्वयं कानों से सुना, आँखों से देखा भी अपने मुँह से मत कहना,
क्योंकि (पूर्ण) सत्य ना तो कहा जा सकता है,
ना ही देखा जा सकता है ।