हिंसा

आत्मा प्राणों से भिन्न है, प्राणों का वियोग होने पर आत्मा को तो कुछ भी नहीं होता, तो हिंसा/अधर्म कैसे हुआ ?

प्राणों का वियोग करने से, उससे सम्बद्ध आत्मा को दु:ख होता है, अत: हिंसा/अधर्म है ।

तत्वार्थ सुत्र टीका – पं. कैलाशचंद्र जी

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