मिठास

मिठास मिश्री जैसी हो – आंतरिक, इसलिये वह श्वेत, पारदर्शी होती है,
जलेबी जैसी बाह्य नहीं, जिस वजह से वह अपने ही लपेटों में उलझी रहती है ।

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One Response

  1. उक्त कथन सत्य है कि मिठास मिश्री जैसी होना चाहिए क्योंकि इसकी मिठास आन्तरिक एवं श्वेत और पारदर्शी होती है जबकि जलेबी जैसी ब़ाम्ह नहीं क्योंकि अपने लपेटों में ही उलझी रहती है। अतः जीवन में वचनों की मिठास मिश्री जैसी होना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।

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