विषय/कषाय
विषय बाहरी, कषाय अंतरंग ।
इनके प्रति प्रतिबद्ध हैं, इसीलिये संसार से प्रतिबद्ध हैं ।
विषय से कषाय और कषाय से विषय होते हैं ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
विषय बाहरी, कषाय अंतरंग ।
इनके प्रति प्रतिबद्ध हैं, इसीलिये संसार से प्रतिबद्ध हैं ।
विषय से कषाय और कषाय से विषय होते हैं ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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विषय इन्द़ियों के द्वारा जानने योग्य पदार्थ को कहते हैं यह अठ्ठासी होते हैं।
कषाय का मतलब आत्मा में होने वाली क़ोधादि रुप कलुषता को कहते हैं, इसमें क़ोध,मान माया और लोभ कषायें होती हैं।
उपरोक्त कथन सत्य है कि विषय बाहरी एवं कषाय अंतरंग। इसके लिए जो प़तिबद्व है, वह संसार से प़तिबद्व है। विषय से कषाय और कषाय से विषय होते हैं।
अतः जीवन में विषय कषाय को छोड़ना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।