धर्म क्रियात्मक यानि करना, जिसके करने से लोग धर्मीं कहें, आचार धर्म है ।
अध्यात्म विचारात्मक ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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धर्म का मतलब सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र है।यह दो प्रकार का होता है, निश्चय और व्यवहार धर्म। व्यवहार धर्म में दान पूजा शील तप त्याग आदि होता है जबकि निश्चय धर्म निर्मलता समता तथा वीतरागता लाता है। उपरोक्त कथन सत्य है कि धर्म यानी क़ियात्मक करना, जिसके करने पर धर्मी कहें,यह आचार धर्म है लेकिन अध्यात्म विचारात्मक होता है। अतः जीवन में निश्चय और व्यवहार धर्म करने पर जीवन का कल्याण होने में समर्थ हो सकता है।
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धर्म का मतलब सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र है।यह दो प्रकार का होता है, निश्चय और व्यवहार धर्म। व्यवहार धर्म में दान पूजा शील तप त्याग आदि होता है जबकि निश्चय धर्म निर्मलता समता तथा वीतरागता लाता है। उपरोक्त कथन सत्य है कि धर्म यानी क़ियात्मक करना, जिसके करने पर धर्मी कहें,यह आचार धर्म है लेकिन अध्यात्म विचारात्मक होता है। अतः जीवन में निश्चय और व्यवहार धर्म करने पर जीवन का कल्याण होने में समर्थ हो सकता है।