आकिंचन्य-धर्म
आकिंचन्य-धर्म को त्याग-धर्म के बाद क्यों लिया ?
त्याग-धर्म में धर्म-वृक्ष के सारे फलों का त्याग हो जाता है । वृक्ष के लिये एक भी फल नहीं बचता, तब भावों में आकिंचन्य-धर्म आता है ।
चिंतन
आकिंचन्य-धर्म को त्याग-धर्म के बाद क्यों लिया ?
त्याग-धर्म में धर्म-वृक्ष के सारे फलों का त्याग हो जाता है । वृक्ष के लिये एक भी फल नहीं बचता, तब भावों में आकिंचन्य-धर्म आता है ।
चिंतन
One Response
आकिंचन्य धर्म का तात्पर्य समस्त परिग़ह का त्याग करके कि कुछ भी मेरा नहीं है।इस प्रकार का निर्लोभ भाव रखना ही यह धर्म है। अतः उपरोक्त उदाहरण सत्य है कि सभी परिग़ह का त्याग करना जिससे ब़हमचर्य की संभावना बढ़ती है यानी वीतरागता एवं बैराग्य की भावना रखने पर ही मोक्ष मार्ग पर चलने में समर्थ होते हैं।