मनुष्य/ त्रियंच/ एक इन्द्रिय, विक्रिया… औदारिक काय-योग से ही करते हैं, क्योंकि उनके वैक्रियक-काय का उदय तो हो ही नहीं सकता ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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विक़िया का मतलब छोटा/ बड़ा,हल्का/ भारी आदि अनेक प्रकार का शरीर बना लेना कहलाता है।यह दो प्रकार की होती है प़थक और अप़थत्क या एकत्व।देव नारकी जीवों कोई तेजस्कायिक,वायुकायिक जीवों को तथा साधु कोई विक़िया करने की सामर्थ प्राप्त होती है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि मनुष्य,तिर्यंच,एक इन्दिय विक़िया यानी औदारिक काय योग से ही करते हैं, क्योंकि उनके वैक़ियक काय का उदय तो हो नहीं सकता है।
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विक़िया का मतलब छोटा/ बड़ा,हल्का/ भारी आदि अनेक प्रकार का शरीर बना लेना कहलाता है।यह दो प्रकार की होती है प़थक और अप़थत्क या एकत्व।देव नारकी जीवों कोई तेजस्कायिक,वायुकायिक जीवों को तथा साधु कोई विक़िया करने की सामर्थ प्राप्त होती है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि मनुष्य,तिर्यंच,एक इन्दिय विक़िया यानी औदारिक काय योग से ही करते हैं, क्योंकि उनके वैक़ियक काय का उदय तो हो नहीं सकता है।