श्रमण की आहार वृत्तियां

1) गोचरी वृत्ति – दाता के वैभव/सुंदरता को बिना देखे आहार करना।
2) अग्निशामक वृत्ति – पानी मीठा हो या खारा, उद्देश्य है – उदराग्नि शांत करना।
3) भ्रामरी वृत्ति – फूल का उपकार मान के अपना सीमित आहार लेना।
4) गड्ढपूर्णवृत्ति – पेटरुपी गड्ढे को भरना है।
5) अक्षमृक्षनवृत्ति – ओंघन के समान, जैसे ग्रीस या डामर पोत देते हैं वैसे ही रुखा-सूखा कुछ भी डाल दो, परिणाम तो काला ही होना है।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

Share this on...

4 Responses

  1. उपरोक्त कथन सत्य है कि श्रमण यानी साधुओं की आहार वृत्तियां जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। महाराज मन्दिर से निकल कर कुछ नियम लेकर निकलते हैं, यदि मिल जाता है वहीं आहार लेते हैं। आहार का उद्देश्य सिर्फ आत्मा के ध्यान के लिए लेते हैं , सीमित आहार लेना होता है।वह खड़े होकर ही लेते हैं, उसमें एक तिहाई भोजन,एक तिहाई पानी एवं एक तिहाई हवा के लिए छोड़ते हैं ताकि अपनी आत्मा की साधना में लीन रह सकते हैं।उनको नियम न मिलने पर कई बार आहार नहीं लेते हैं,यह उनकी कर्म निर्जरा होती है और मन कभी अशांत नहीं होता हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

August 25, 2021

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930