मनुष्य और भगवान

मनुष्य अंदर के शत्रुओं (कर्मों) को शत्रु मानता नहीं, बाहर में शत्रु पैदा करके उनसे जूझना ही अपना धर्म मानता है।
भगवान बाहर के शत्रुओं को क्षमा करके, उनसे Account Close कर देते हैं तथा अंदर के 4 शत्रुओं का नाश करके “अरहंत” तथा आठों को समाप्त करके “सिद्ध” भगवान बन जाते हैं।

चिंतन

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One Response

  1. उपरोक्त कथन सत्य है कि मनुष्य आजकल अंदर के शत्रुओं यानी कर्मों को शत्रु मानता नहीं है,वह बाहर के शत्रु पैदा करके, उनसे जूझना ही अपना धर्म मानते हैं। अतः वह अपने जीवन का कल्याण करने में समर्थ नहीं होते हैं। उपरोक्त कथन सत्य है कि भगवान् बाहर के शत्रुओं को क्षमा करके अपनी आत्मा में लीन रहकर अंदर के 4 शत्रुओं का नाश करके अर्हन्त तथा आठों को समाप्त करके सिद्ध भगवान् बन जाते हैं। सिद्ध भगवान् बनने के लिए जिन्होंने अपने आठ कर्मों को नष्ट करते हैं,वही परमात्मा कहलाते हैं।

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