Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर

बोलना

बोलने में शारीरिक श्रम लगता है/खून ख़र्च होता है। एक शब्द के उच्चारण में एक पाव दूध जितनी शक्ति लगती है। इसलिये कम बोलना चाहिये,

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अदृश्य

अदृश्य वायरस यदि आपको डरा सकता है, तो अदृश्य भगवान पर श्रद्धा आपको बचा भी सकती है। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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दृष्टि

दृष्टि पलटा दो, तामस समता हो और कुछ ना (तामस और समता, एक दूसरे को पलटाने से, यानि अंधकार में समता रखूं) आचार्य श्री विद्यासागर

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पास / फेल

33नं. वाला पास, पर 32नं. वाला फेल; या कहें 33नं. वाला 67नं. से तथा 32नं. वाला 68नं. से फेल है। पर 32नं. लाने का साहस

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प्रश्न

जब तक प्रश्न, तब तक उत्तर की भूख बनी रहती है । भगवान प्रश्नों से परे होते हैं । कुछ लोगों के मन में प्रश्नों

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मोह

अमियाँ तोड़ने के लिये बच्चे पत्थर मारते हैं, अमियाँओं के टुकड़े गिरते हैं पर अमियाँ डाल को छोड़तीं नहीं। पकने पर हवा के झौंके से

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कर्त्तव्य / दायित्व

कर्त्तव्य – सबका/सब पर, दायित्व – कुछ का/कुछ पर । (कर्त्तव्य में प्राय: कर्त्ता भाव आ जाता है) आचार्य श्री विद्यासागर जी

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प्रभु

जो सब स्वीकार कर लें/ सबको स्वीकार लें – वह प्रभु। हम प्रभु को स्वीकार लें/ प्रभु की स्वीकार लें तो हम भी प्रभु बनने

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दया

अकाल में भी जब सब ओर पानी समाप्त हो जाता है, आँख में पानी बचा रहता है (जब तक आदमी बचा रहता है)। आचार्य श्री

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शत्रु / मित्र

जिनसे मेरे कर्म कटें वे मेरे शत्रु कैसे ! जिनसे मेरे कर्म बंधे वे मेरे मित्र कैसे !! आचार्य श्री विद्यासागर जी

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मंगल आशीष

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