Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर

जिनवाणी

जिनवाणी माँ हमें समझा रही है कि कब तक चारों गतियों में जन्म मरण करते रहोगे ? अन्य पदार्थों की चाह में यह भ्रमण अनंत

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धैर्य

उत्साह बढ़े उत्सुकता घटे सो महान धैर्य आचार्य श्री विद्यासागर जी

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तप

तप से/ताप (गर्मी) से हम बहुत घबराते हैं। जबकि ताप के बिना न अनाजादि पैदा होगा, ना ही उसे पचा (जठराग्नि) पायेंगे। आचार्य श्री विद्यासागर

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किससे बचना ?

अपरिचित से ज्यादा परिचित से बचो। आचार्य श्री विद्यासागर जी (अपरिचित से तो सावधान रहते हैं, परिचित से नहीं तथा मोह में भ्रमित भी रहते

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वेग

1. वेग – काम करने की गति सामान्य/ कुछ अधिक। 2. आवेग – व्यक्ति के भावों में उछाल आता रहता है। 3. उद्वेग – उद्वलित/

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सन्मार्ग

मोक्षमार्ग में मन व इंद्रियाँ काम नहीं करतीं, उनका निग्रह* काम करता है। *नियंत्रण / सीमांकन आचार्य श्री विद्यासागर जी

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दादागिरी

दादा बने हो दादागिरी न करो दायरे में रहो आचार्य श्री विद्यासागर जी

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ध्यान

अंतराय होने पर श्रावक रोने लगा। आचार्य श्री विद्यासागर जी… यह आर्तध्यान नहीं धर्मध्यान है।

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अच्छे कार्य

अंतराय अच्छे कार्य में ही आते हैं। (तो अंतराय आने पर घबरायें नहीं, मानें आपके निमित्त से कुछ अच्छा कार्य हो रहा है) आचार्य श्री

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ऊँचाई

कितने बड़े-बड़े जंगलों में बड़ी-बड़ी अग्नि लगी/ कितनी बार प्रलय आयी, पर आसमान गरम तक नहीं हुआ| कारण ? बहुत ऊँचाई पर है। यदि हम

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मंगल आशीष

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February 26, 2024

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