Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर
विश्वास
विश्वास तब जब बुद्धि के परे हो, फिर चाहे संसार हो या परमार्थ। विश्वास किया जाता है, दिया नहीं जाता। आचार्य श्री विद्यासागर जी
विशेष
स्वर्ण में चकाचौंध नहीं, नकली ज्यादा चमकीला होता है। ऐसे ही सही मायने में बड़े/ ऋद्धिधारी सहज होते हैं। आचार्य श्री विद्यासागर जी (फिर हम
पुलिस
पुलिस स्त्रीलिंग है सो उन्हें माँ जैसा व्यवहार करना चाहिये, जो बच्चों को गलती पर मारती भी है और सुधारने के लिये प्रेम भी करती
अहोभाग्य / सौभाग्य
सौभाग्य → त्रैकालिक (भूत, भविष्य, वर्तमान)। अहोभाग्य → वर्तमान का।। (अहोभाग्य जो सौभाग्य को Cash करले)* इसलिये अहोभाग्य, सौभाग्य से बहुत महत्वपूर्ण है। आचार्य श्री
इन्द्रिय विजय
इन्द्रिय विजय का तरीका पूछने पर आचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा- “इन्द्रियों का काम मन से मत लेना। इन्द्रियों के संवेग को कम करने
संगति
पानी अग्नि के सम्पर्क से गर्म तो हो जाता है, पर स्वाद आदि गुण नहीं बदलते हैं। जुआरी की संगति से युधिष्ठर जुए में सब
अंतर्दृष्टि
आँखें आँखों से ना मिलें, तो भीतरी आँखें खुलती हैं। आचार्य श्री विद्यासागर जी
स्वभाव
स्वभाव – देखना, जानना। विभाव – बिगड़ना। इसलिए कहा – देखो, जानो, बिगड़ो मत। आचार्य श्री विद्यासागर जी
मोक्षमार्ग
मोक्षमार्ग पर चलना नहीं, रुकना होता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
बच्चे / शिष्य
प्राय: बच्चे/ शिष्य उद्दंड होते हैं, उनको डंडे की जरूरत होती है, पर डंडा गन्ने का होना चाहिये। आचार्य श्री विद्यासागर जी
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