Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर
ध्यान / विज्ञान
स्वस्थ ज्ञान का नाम ध्यान है। अस्वस्थ ज्ञान का नाम विज्ञान। आचार्य श्री विद्यासागर जी
संग्रह / परिग्रह
संग्रह इसलिये ताकि अपने और दूसरों के आपात-काल में काम आये। परिग्रह…”चमड़ी जाये पर दमड़ी न जाय” की प्रवृत्ति। इसलिये संग्रह का विरोध नहीं पर
दया
दया के अभाव में शेष गुण कार्यकारी नहीं, दया गुण रूपी माला का धागा है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
गुरु-वचन
गुरु के द्वारा दिये गये सूत्र, मंत्र हैं। ये सूत्र शास्त्र से भी ज्यादा आनंद देने वाले/ छोटे तथा सरल रास्ते से मंज़िल दिलाने वाले
निंदा
पर्वतों की चोटियों पर तप करने से भी ज्यादा कर्म कटते हैं, निंदा को सहन करने से। आचार्य श्री विद्यासागर जी
मोक्षमार्ग
ठंडे बस्ते में, मन को रखना ही, मोक्षमार्ग है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
स्वदर्श
दर्पण को ना*, दर्पण में देखो ना**, निर्दोष होने। आचार्य श्री विद्यासागर जी * बाह्य/ Frame/ दर्पण की Quality. ** दर्पण में अपने दोषों को
चिंतन
दिन में भोजन, रात को जुगाली। ऐसे ही दिन में अध्ययन और रात में जुगाली के रूप में अध्ययन का चिंतन होना चाहिए। जो अध्ययन
गुरु / शिक्षा
दक्षिण में शिक्षा को “दंड” देना कहते हैं यानि जो उदंड को डंडे से अनुशासित करे पर कुम्हार के घड़े बनाने जैसा अंदर हाथ रखकर।
दया
“पर” के ऊपर की गयी दया से स्वयं की याद आती है (आत्मा की, उसके दया स्वभाव की)। जैसे चंद्र पर दृष्टि डालने से, नभ
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