Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर
धर्म
श्रावकों (गृहस्थ) का धर्म नैमित्तिक (पर्व/उत्सव) होता है; साधुओं का हर समय। आचार्य श्री विद्यासागर जी
स्वयंसेवक
कुंडलपुर मंदिर निर्माण के अवसर पर … नींबू को संतरे में मिलाने से नारंगी। ऐसे ही बड़े-बड़े प्रासाद/ मंदिर बनाने में बड़े-बड़े पत्थर प्रयोग होते
कर्तव्य
कर्तृत्व* का भाव कर्तव्य से विमुख कर देता है। *कर्ता भाव आचार्य श्री विद्यासागर जी
अतीत
अतीत का तो मरण हो चुका है। पर हम स्वीकारते नहीं, उसमें बार-बार, घुस-घुस कर सुखी/ दुखी होते रहते हैं। आचार्य श्री विद्यासागर जी
ज़रुरत / कृपा
कोठी में छप्पर नहीं तो ऊपर वाला छप्पर फाड़ कर कैसे देगा ! आचार्य श्री विद्यासागर जी
सोच
अपना सोचा, ना हो, अफसोस है*, फिर भी सोचो**। आचार्य श्री विद्यासागर जी (* होगा वही जो भाग्य में लिखा है। ** क्योंकि पुरुषार्थ करना
सकारात्मकता
ना, मत बोलो, “हाँ” की कूबत देखो, दंग रह जा। आचार्य श्री विद्यासागर जी
समता
हर बात को स्वीकार कीजिए, समता आपकी बलशाली होगी। आचार्य श्री विद्यासागर जी
पाप/पुण्योदय
दहला देता था वीरों को, जिनका एक इशारा; जिनकी उंगली पर नचता था, ये भूमंडल सारा। कल तक थे जो वीर, धीर, रणधीर अमर सैनानी;
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