Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर
गुरु / शिष्य
गुरु शिष्य से → मैं आपका हूँ, आपके कहने से, मूर्छा मुक्त हूँ। (शिष्य गुरु को अपना मानता है सो गुरु शिष्य के कहने से
कथनी / करनी
दया का कथन ज़ुदा है, करन ज़ुदा। अब तो कृपाण पर भी गुदा रहता है → “दया धर्म का मूल है”, जबकि कृपाण के तो,
भेद-विज्ञान
कोयल चालाकी से अपने अंडे कौवे के घोंसले में दे देती है। बच्चे निकलने पर कौवा अपने और कोयल के अंडों में फ़र्क नहीं कर
जीव कल्याण
करोड़ों बार स्तोत्र पढ़ने/ भक्तामर आदि का अखंड पाठ जीवन भर करने से उतना फल नहीं मिलेगा, जितना पाँच मिनट सब जीवों के सुखी रखने
तप
संसार की वेदना को मिटाने के लिए तप रूपी बाम को लगाना होगा। कषाय (मायादि) के टेढ़ेपन को ताप से ही सीधा किया जा सकता
अध्यात्म / ध्यान
आचार्य श्री विद्यासागर जी को बताया गया कि अध्यात्म/ध्यान शिविर लगाया जा रहा है और उसके लिये बड़े-बड़े विद्वानों को बुलाया जा रहा है। आचार्यश्री
ज्ञानकला
मढ़िया जी में आचार्य श्री विद्यासागर जी मंच पर विराजमान थे। तेज़ ठंडी हवा चल रही थी। आ.श्री बिलकुल सहज बैठे थे, जबकि बाकी सब
गुरु
“गुरो: सर्वत्र अनुकूलवृत्तिः” (यानि गुरु जो कहते/चाहते हैं, वह सब मेरे अनुकूल/भले के लिये है) इसका हमेशा पालन अनिवार्य है। इसको विनय कहते हैं, इसके
कमजोर / बलवान
कमजोर जो आकुल है/ बल का प्रयोग करता है। बलवान जो निराकुल है/ सहन करता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
सेवा
सेवा….. 1. मन मिलाने का/ वात्सल्य पाने का उपाय है 2. कर्तव्यनिष्ठा है 3. दूसरों की सेवा, अपनी वेदना मिटाती है 4. नम्रता व प्रिय
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