Category: चिंतन

संसार

हिटलर ने कहा है कि – झूठ को यदि 100 बार दोहराया जाये तो उसे सच माना जाने लगता है । संसार को बार बार

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मोह/रागद्वेष

मोह जननी है, रागद्वेष संतति । चिंतन मोह ही संसार का बीज भी है । क्षु. श्री गणेशप्रसाद वर्णी जी

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शुभ-भाव

मीठे फलों से बाजार भरा पड़ा है, कड़वे भी तो पैदा होते होंगे ! वे क्यों नहीं दिखते ? मीठे फलों के पेड़ लगाये जाते

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अभ्यस्त

वनस्पति घी खरीदते समय पूँछते हैं – यह असली तो है ना ? नकली को असली मानने लगे हैं, क्योंकि आदत पड़ गयी है ।

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विश्वास

धर्म की कुछ बातों पर विश्वास नहीं होता ! Homoeopathy पर जो लोग विश्वास नहीं करते वे भी दवा तो लेते हैं और रोग भी

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क्रिया और पाप

पाप का बंध क्रियायें करने से ही नहीं, कभी कभी क्रियायें न करने से भी हो जाता है, जैसे किसी असहाय की सहायता न करना

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मौन

मुँह से अपशब्द निकलने पर बड़ा कारगर प्रायश्चित है – मौन । चिंतन

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गुरू

गुरू के पीछे चलोगे तो, गुरूता आयेगी, गुरू की टांग खीचोगे, तो अपनी टांगो पर खड़े नहीं हो पाओगे । चिंतन

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वितर्क/विवेक

वितर्क कैंची है, विवेक छ्लनी। वितर्क काटता है, विवेक छिलका उतारता है, अंदर का वास्तविक स्वरूप निकालता है, बाहरी प्रदूषण हटाता है । चिंतन

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श्रद्धा

घड़े में जरा सी दरार पड़ जाये तो सारी छाछ निकल जाती है पर मक्खन घड़े में ही बना रहता है । हमारी श्रद्धा भी

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मंगल आशीष

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