लड़कियों को आगमानुसार पिता की सम्पत्ति पर बराबर का अधिकार होता है ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

आचार्य श्री ज्ञानसागर जी(आचार्य श्री विद्यासागर जी के गुरु) कहते थे …

मानी को मान दे देना चाहिये (उपद्रव नहीं करेगा) ।
वैसे भी ईंधन को सिर पर ही रखते हैं, अंत में तो उस बेचारे को जलना ही होता है ।

स्वर्ग/नरक हैं भी या नहीं ?
हैं तो, क्यों ? सुख/दुःख तो हम यहाँ ही भोग रहे हैं ?

संसार के उत्कृष्ट सुख/दु:ख से भी अधिक सुख/दु:ख हो सकते हैं ना !
उसे भोगने जहाँ जाना होगा, वही स्वर्ग/नरक हैं ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

सोने की पहचान –
1. पीला रंग पीतल का भी, पर चमक में फर्क ।
2. अग्नि परीक्षा में और-और चमकता है ।

मूल्यवान का मूल्यांकन करना बहुमूल्य गुण है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

जो पाप रूप सामग्री पेट में डालते हैं तथा पाप करते हैं, उनका पापी-पेट ।
साधु, शुद्ध सामग्री लेने वाले का पेट पापी कैसे ?
वे पाप काटते हैं, उन पापों को जो पेट में पहले के भरे हुए हैं ।

छोटा सा कंकड़ तालाब में खुद तो डूब जाता है पर लहरें दूर-दूर तक छोड़ जाता है, जो पूरे वातावरण को हिला देती हैं ।
भौतिक सुख पाने की आकांक्षा ऐसी ही है ।

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

हर छत, ऊपर मंज़िल बनने पर फर्श बन जाती है ।
छत को घमंड ना आये, ऐसा क्या करें ?

यश-बड़वानी

हर उपलब्धि को छत की क्षण-भंगुरता की तरह देखें ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

जीवन-यात्रा… “क्या नहीं” से “क्या है” तक की ही होती है ।
प्यार पाने (प्यार तो कुत्ते से भी मिल जाता है) से इज्जत पाने तक की यात्रा है ।

(एकता – पुणे)

ज्योतिष-विज्ञान असफल हो सकता है, क्योंकि बहुत से जीवों की एक सी ग्रहदशा होती है ।
पर स्वर-विज्ञान नहीं क्योंकि वह हर व्यक्ति की विशेष होती है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

उड़ती हुई धूल को गुलाल मानना तो आसान है,
पर आंखों में फेंकी धूल को गुलाल कैसे मानें ?

यश-बड़वानी

आ.श्री विद्यासागर जी कहते हैं कि कोई धोखा दे तो उसे धोकर खा लो ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

खेती का संकल्प लेते ही विकल्प शुरू हो जाते हैं,
याने खतपतवार पहले तथा साथ-साथ उगता रहता है ।
किसान को समय-समय पर साफ सफाई करते रहना चाहिये ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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