ध्यान में मन भटकता क्यों है ?

जिनका मन दिन-भर भटकता है, उनको रात में सपने बहुत आते हैं और भटकने वाले होते हैं ।
साधु जब विशेष ध्यान करते हैं तब एक दिन पहले से भोजन/ बोलना छोड़कर एकांत में रहने लगते हैं ।

अन्य दर्शनों की तरह, जैन दर्शन का एक शास्त्र क्यों नहीं ?

अन्य दर्शनों में भगवान अकेला कर्ता होता है, जैन दर्शन में हर जीव को भगवान बनने की शक्ति है/सबमें अपने अपने कर्मों के कर्ता/भोगतापने की शक्ति होती है, सो बहुत सारे शास्त्रों की आवश्यकता होती है ।
(ज्ञान भी अथाह है, एक शास्त्र में समायेगा नहीं)

मुनि श्री सुधासागर जी

ज्ञान – जानकारी देता है, आकर्षण का निमित्त बनता है ।
विज्ञान – उस ज्ञान को Analyse करके, भौतिक सुविधायें देता है ।
धर्म – उसी ज्ञान से हित/अहित की समझ देता है ।

मान इतना बुरा नहीं है, जितना दूसरों का अपमान करना ।
दूसरों का सम्मान न करें चलेगा, अपने सम्मान की आकांक्षा ना रखें ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

आचार्य श्री ज्ञानसागर जी (आ. श्री विद्यासागर जी के गुरु) कहा करते थे – 2 रु. की हाँड़ी लेने से पहले ठोंक-बजा कर लेते हो,
गुरु को भी खोजें, पहचानें, पायें तब उनके हों ।

शरीर पर मैल लगने पर मक्खियाँ भिनकने लगती हैं, मैल साफ करने पर ही हटती हैं ।
विकार रूपी मैल आत्मा पर लगने पर समाज तथा ख़ुद की नज़र में थू थू होने लगती है ।
धार्मिक-क्रियाओं से ही यह मैल दूर होता है ।

मुनि श्री अविचलसागर जी

पहले अपने आत्मविश्वास/ पुरुषार्थ से समस्याओं को निपटाओ,
न निपटे तब भगवान/ गुरु की शरण में जाना;
लेकिन वहां भी अपनी भक्ति के विश्वास पर ।
2) यदि समस्या ख़ुद निपटालो,
तब तो भगवान/ गुरु की शरण में आभार प्रकट करने ज़रूर जाना ।

मुनि श्री सुधासागर जी

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