उलझन सुलझाने का सरल उपाय – उलझन में “साता” का “स” लगा लो, उलझन “सुलझन” बन जायेगी ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

वृक्ष लगाना अच्छा है (धार्मिक क्रियायें),
पर उसकी छाया लेना (शांति/सुकून),
फल खाना (आत्मोन्नति),
संतति बढ़ाना (प्रभावना),
और भी अच्छा ।

आचार्य श्री वसुनंदी जी

फल एक बार ही स्वाद (खट्टा या मीठा) देता है,
कर्म भी एक बार फल देकर झर जाते हैं ।
(चाहे जैसा का तैसा/ खट्टा खा लो,
या
समता/ ज्ञान की चाशनी के साथ मीठा खाओ)

आचार्य श्री विद्यासागर जी

तप आदि के कष्ट वैसे ही हैं, जैसे फोड़े को ठीक करने के लिये डॉक्टर पहले फोड़े को फोड़ता है/कष्ट होता है ।
उपचार करा लेने पर भविष्य में सुकून/ आनंद,
न कराने पर कष्ट बढ़ता ही जाता है ।

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

सरल बनने के दो तरीके हैं –
1. माला जपें – मुझे सरल बनना है ।
2. आसपास के लोगों को भी यही बता दें कि — मुझे सरल बनना है, आप में कुटिलता देखने पर आपको याद दिला देंगे कि आपको तो सरल बनना था न !

मुनि श्री अविचलसागर जी

बर्फ को आग भी गरम नहीं कर सकती ।
जल पी लेने से वह शरीर रूप Solid बन जाता है;
ऐसे ही हम क्रोध को पी जायें तो सामने वाले के अपशब्द हमको गरम नहीं कर पायेंगे ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

सूर्योदय लाल होता है (राग का प्रतीक)
दोपहर तपते तपते सफेद/तेजस्वी;
राग को कम/खत्म करने के लिये तप बहुत महत्वपूर्ण है ।

सूर्यास्त फ़िर लाल (ढ़लती उम्र में प्रायः राग फ़िर से उभर आता है),
सावधान !
ये लाली अंधकार में परिवर्तित हो जाती है !!

तीर्थों/गुरुओं के पास जाते हैं तो मन सुगंधि से भर जाता है, उसे घर तक कैसे बनायें रखें ?

बाग की सुगंधि का Essence बना कर घर पर ले आते हो, जब भी घर में दुर्गंध आती है तो सूंघ लेते हो,
ऐसे ही तीर्थों की विशुद्धि/ गुरुओं की शिक्षा मन में भर लाओ, ज़रूरत पर उस विशुद्धि को महसूस करो/ उपदेशों को याद कर लो।

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