विदेशों में तिथियाँ वहाँ के देशांतर/अक्षांशादि से निकालना चाहिये ।
पर वहां ऐसे कलैंडरादि होते नहीं हैं इसलिये वहाँ भारत की तिथि मानते हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
भौंरे और गोबर के कीड़े की मित्रता हो गई, भौंरा गुबरीले से मिलने गया तो उसको गोबर खाने को दिया, दुर्गंध सहनी पड़ी ।
गुबरीला भौंरे के घर गया तो उसे फूल पर बिठा दिया, खाने को सुगंधित पराग ।
माली उसे प्रभु चरणों में पहुँचा दिया ।
लोहे पर जंग ना लगने देने का उपाय –
उपयोग
जैसे हथौड़ा/चाकू/रेलपटरी/सुई यदि उपयोग में न आयें तो उन पर जंग लग जाती है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
अपने दु:खों से दुखी होना वेदना, पाप-बंध;
दूसरों के दु:खों से दुखी होना संवेदना, पुण्य-बंध ।
कामना में इच्छा/आग्रह है, पूरी ना होने पर दल बदलते रहते हैं;
प्रार्थना में ना इच्छा है, न उसके पूर्ण होने का भाव और ना ही दलबदल;
प्रार्थना करते समय कामनायें समाप्त हो जाती हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
बरसे बादल वहाँ वहाँ, थे सागर जहाँ जहाँ ।
हवाओं का क्या दोष ?
फ़रमान था, ऊपर वाले का ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
सम्बंध बनाना जैसे मिट्टी पर मिट्टी लिखना,
सम्बंध निभाना जैसे पानी पर पानी लिखना ।
या कहें –
बनाना जैसे मिट्टी में पानी मिलाना,
निभाना जैसे मिट्टी में पानी बनाये रखना ।
थोड़े समय के लिये चीज़ों का त्याग करने से द्रव्य का आकर्षण छोड़ने का लाभ तो मिलेगा,
पर Period short होने से भावों में नियंत्रण नहीं रह पायेगा ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
जीवन रूपी रथ के…
घोड़े – कर्म हैं,
पहिये – कर्मफल (धीरे/ तेज/ कीचड़ में धसना),
विवेक – सारथी (घोड़ों को optimum दौड़ाना पर थकाना नहीं; रथ को कीचड़ में न जाने देना ।
सुपथ पर चलोगे तो जीवन सरल, कुपथ पर हिचकोले लेगा ।
आदत अच्छी/बुरी दोनों ।
स्वभाव अच्छा ही ।
बुरी आदत पड़ने पर स्वभाव, विभाव बन जाता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
सत्यनिष्ठा की लौ पर,
रख दी सलीके से,
संयम की चिमनी;
प्रकम्पित न हो ताकि,
प्रलोभन की आंधी में ।
(गुरुवर मुनि श्री क्षमा सागर जी के प्रवचन से प्रेरित)..कमल कांत जैसवाल
जीवन जितना सादा रहेगा,
तनाव उतना ही आधा रहेगा ।
(सुरेश)
(Aruna)
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