गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
स्वतंत्रता = क्रियात्मक जीवन
परतंत्रता = प्रतिक्रियात्मक जीवन
पहले देश पराधीन था पर सोच/चेतना आज़ाद थी,
आज देश आज़ाद लेकिन सोच/चेतना पराधीन ।
आचार्य श्री विद्या सागर जी …स्वराज तो आ गया, सुराज लायें । वह आयेगा…स्वभाषा, स्वशिक्षा, स्वरोज़गार, स्वदेशी से ।
मुनि श्री प्रमाण सागर जी
अधिक प्रकाशित दीपक वाले के साथ चलने में लाभ तो है,
पर जब वह अपने रास्ते या अपनी चाल से चलकर आपसे अलग हो जायेगा तब तुम रास्ता भटक जाओगे ।
सो उसके सानिध्य में रहकर अपना दिया प्रकाशित कर लो ।
धर्म सामूहिक भी है और व्यक्तिगत भी ।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
रोना हो तो घर के अंदर ही रोना ।
दरवाजा तो हँस कर ही खोलना ।
यदि सामने वाले को पता लग गया कि तुम बिखर गये हो, तो वह एक एक ईंट उठा ले जायेंगे ।
मुनि श्री अजितसागर जी
वचन तीन बार क्यों ?
पहली बार मंद सहमति,
दूसरी बार नकारात्मक (हाँ, हाँ….)
तीसरी बार पक्का ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
बुराई के प्रति आकर्षण होता ही नहीं है ।
जिसको बुरा सिर्फ कहा ही नहीं, मन से भी बुरा मान लिया,
जैसे कूड़ा/ज़हर, तो आकर्षण होगा !
मुनि श्री सुधासागर जी
भगवान का जन्मदिन मनाने के कई लाभ –
1. दूसरों की खुशी में शरीक होने का पुण्य ।
2. बड़े आदमी के उत्सव में शरीक होने से आपका रुतबा बढ़ता है, Return Gift भी बहुमूल्य मिलती है ।
जीत निश्चित हो तो अर्जुन कोई भी बन सकता है,
पर हार निश्चित हो तो, अभिमन्यु बनने का जो साहस रखते हैं, उनके नाम से पिता पहचाने जाते हैं ।
धन में आनंद नहीं, धनी होने में है ।
ज्ञान में आनंद नहीं, ज्ञानी होने में है ।
जीवन को सुचारु रूप से चलाने/ सफ़ल बनाने…
1. क्रम से कार्य करना ।
2. ऐसे कार्य करना जिससे आगे का क्रम बन जाये ।
संसार भ्रमण का कार्यक्रम हमने खुद बनाया है,
खुद भोग रहे हैं,
खुद ही देख रहे हैं ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
(Manju)
हवा झंड़े को लहरा तो देती है, पर उसको उखाड़ नहीं पाती ।
ऐसे ही कर्म जीव को हिला तो सकते हैं, उखाड़ नहीं सकते ।
“अगरबत्ती” अपने सहारे जलती है, इसलिये महकती है, फूँक मारने से भी बुझती नहीं है (और ज्यादा जलने लगती है),
जबकि “दिया”, घी/बाती/मिट्टी के सहारे, फूंक मारो तो अंधकार ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
नियति यानि योग्यता ।
आचार्य अकलंक देव स्वामी ने लिखा है – जिस कारण से जो कार्य होना है/हो सकता है, उसी से वह कार्य होता है ।
जैसे आँख की नियति देखना है, सुनना नहीं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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