अंधों की बस्ती में, आँखों की महिमा गाओगे तो वे तुम्हारी आँखें फोड़ देंगे ।
वहाँ माध्यस्थ भाव रखें ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
आत्मा में स्पर्श/स्वाद/गंध/वर्ण नहीं होता,
पर आत्मा ही स्पर्श/स्वाद/गंध/वर्ण को महसूस करती है ।
चिंतन
यह तंत्र-विद्या का विषय है,
जैसे कोई मज़ाक में कह दे – “डाकू आ गये”, तो पसीना आने लगता है ।
आधार नहीं है, पर प्रभाव है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
अनेकांत अनेक दृष्टिकोंण नहीं, अनिर्णयात्मक भी नहीं,
बल्कि समग्र (पूर्ण) दृष्टि ।
खून चढ़ाने से पहले ग्रुप मिलाया जाता है तभी जीवन की रक्षा होती है ।
अंतरजातीय विवाह में भी यदि संस्कार/संस्कृति मिलाली जांय तभी संस्कार/संस्कृति की रक्षा हो पायेगी ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
क्या धार्मिक क्रियायें करने से पापोदय शांत होता है ?
धार्मिक क्रियायें करने से पुण्य मिलता है, पुण्य अर्जन से पापोदय शांत होता है ।
(जैसे जलन पर शीतल लेप)
मुनि श्री सुधासागर जी
शरीर स्वर्णयुक्त पाषाण है, मूल्यवान है ।
तपा लिया तो शुद्ध स्वर्ण निखर आता है, बहुमूल्य की प्राप्ति हो जाती है ।
निमित्त ना मिलने/पुरुषार्थ ना करने पर प्रथम अवस्था में ही पड़ा रहता है ।
चिंतन
भगवान और भाग्य का हमारे जीवन में Role कब आता है ?
जब हमारा Role समाप्त हो जाता है, तब उनका Role शुरू होता है ।
अपने को स्थिर रखना, हमारा Role है, परिस्थतियों को स्थिर रखना उनका ।
(श्रीमति सुरिंदर)
अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा – E = mc2
इसे शिक्षा में घटित करें –
E = Education में,
M = Mind,
C = Concentration
यानि शिक्षा में दिमाग से ज्यादा एकाग्रता का महत्व है ।
चिंतन
पर्यावरण की रक्षा की उत्कृष्ट साधना जैन संतों में दिखती है—
साधनों का कम से कम प्रयोग; अधिक से अधिक रक्षा,
यदि आहार लेते समय मुँह में बीज टूट जाये तो आहार छोड़ देते हैं/प्रायश्चित लेते हैं कि इस बीज में वृक्ष बनने की संभावना थी, वह मेरे निमित्त से समाप्त हो गयी ।
चिंतन
सुधारने का प्रयास इसलिये करते हैं ताकि हँसने का वातावरण बने ।
यदि इस प्रयास में हमको रोना आ जाये तो सुधारना बंद कर दो ।
ललाट पर टीका चंदन का ही लगाना चाहिये केशर का नहीं,
क्योंकि चंदन ठंडी होती है और केशर गर्म ।
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