वर्षगाँठ = गाँठ का एक वर्ष और निकलना ।
धन ज़रूरत के लिये, ज़रूरतमंदों के लिये,
जोड़ने और छोड़ने के लिये नहीं ।
नाव को मंज़िल तक पहुँचाने के लिये, नाव में भरने/डुबाने के लिये नहीं ।
भगवानों तक ने सैकड़ों सालों तक कैसी-कैसी विपत्तियाँ झेलीं/ कर्मों से युद्ध करते रहे,
और उनके भक्त कुछ महीनों के कोरोना से घबराने/डरने लगे !
आचार्य श्री विद्यासागर जी
पश्चिम की हवा लोगों को रुचिकर लगती है ।
पर वे भूल जाते हैं कि शीतलता तो पुरवय्या में ही होती है ।
गर्भ में बच्चा सुनता नहीं, पर संस्कारित होता है ।
(जैसे पेड़/पौधों की Growth)
तथा माँ के संस्कार भोजन के द्वारा पहुँचते हैं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
प्रकाश ऐसा उत्पन्न करो, जिसके लिये दियासलाई की तीली की ज़रूरत ना पड़े ।
स्वप्रकाशित/ स्वआश्रित ।
“मेरा मकान अच्छा हो” चलेगा/दोष नहीं,
पड़ौसी से अच्छा हो – अपराध;
प्रतिस्पर्धा खुद से ठीक, दूसरों से गुनाह ।
इच्छा इतनी करो कि बिस्तर पर जाते समय शेष ना रह जाय, नींद निर्विकल्प आये ।
भगवान ने क्या देखा, भगवान जानें,
भगवान ने क्या कहा, हम जानें और उसको follow करें ।
बच्चों और युवाओं को अधिक से अधिक सीखना चाहिए,
बुजुर्गों को अधिक से अधिक भूलना चाहिए ।
आर्यिका श्री विज्ञानमति माता जी
परमार्थ में – अच्छे से (अच्छे उद्देश्य के लिये) समर्पित करना ।
संसार में – तबाह करना ।
कैंसर पीड़ित की सेवा करना अच्छी बात;
कैंसर ना होने देना – धर्म, सबसे अच्छी बात ।
दोनों एक दूसरे के पूरक ।
जानना = जानकारी
मानना = जानकारी + श्रद्धा
ध्यान किया या कराया नहीं जाता,
बल्कि जिया जाता है ।
कोरोना जैसी महामारी में distancing, physical होनी चाहिए,
socially तो distances कम होने/ मिटने चाहिए,
तभी हम मिलकर उससे महायुध्द जीत सकेंगे ।
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