विनय करने को कहा, तो ‘अविनय नहीं करना’, कहने की क्या आवश्यकता थी ?
सद्गुणों की विनय करें, किंतु कमजोरीयों की अविनय भी नहीं करें।

चिंतन

1. सरल –> सामान्य/ अज्ञानी/ रागी गृहस्थ करता है पर दुःख का कारण।
2. कृत्रिम –> नाटक में… ज्ञानी/ समझदार करता है, सब संतुष्ट। जब तक संसार में हैं, यह धर्म में भी आगे बढ़ायेगा।
3. कुटिल –> गलत अभिप्राय के साथ जैसे Suspense सिनेमा में।

चिंतन

मर्जी उन्हीं की जिन्हें मर्ज़ होता है (वे ही ज़िद करते हैं/ अड़ियल होते हैं)।
भगवान की मर्जी ही तेरी अर्ज़ी।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

आँख खोलोगे तो मनोज्ञ/ अमनोज्ञ पदार्थ दिखेंगे ही, तब राग/ द्वेष के भाव होंगे ही। बचना है तो सिर/ आँख झुका कर रहना*।

ब्र.संजय (आचार्य श्री विद्यासागर जी)

(जैसे आचार्य श्री खुद रहते थे)

प्राय: सुनने में आता है अमुक व्यक्ति बहुत बुरा है।
सही प्रतिक्रिया –> ऐसा है ! तो उनकी बुराइयों की  लिस्ट बना कर देदें। पर उन बुराइयों के सामने एक कॉलम और बनायें उसमें अपने अंदर की बुराइयों के लिये क्रॉस अथवा टिक करें।

चिंतन

(आप ज्यादातर काॅलमों में टिक ही पायेंगे)

ईश्वरचंद विद्यासागर एक नाटक देख रहे थे। कलाकार स्टेज पर लड़की के साथ अभद्रता का अभिनय निभा रहा था।
विद्यासागर से देखा नहीं गया। उन्होंने स्टेज पर जाकर कलाकार को जूता मार दिया। कलाकार ने जूता सिर पर रख लिया और कहा –> मेरे जीवन का सबसे बड़ा इनाम है कि विद्यासागर जी ने उसे सच्चा मान लिया।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

(क्या हम संसार में ऐसा अभिनय नहीं कर सकते !)

स्कूल में एक लड़‌का बहुत शैतान था, फेल होता रहता था। उसके दादाजी को बुलाया गया। वे उसे लेकर अपनी खानदानी हवेली दिखाने ले गये। पूर्वजों का गौरव बताया। 12  वीं कक्षा में उस बच्चे के 78% नम्बर आये।

एकता – पुणे (संस्मरण)

यदि हम अपने भगवानों के गौरव को याद करें कि हम किनके वंशज हैं तो क्या हम घटिया काम कर पायेंगे !

क्या करें, रिश्तेदारी निभाने में धर्मध्यान में बहुत व्यवधान होता है !…..अंजू

मैं अकेले में आहार 1/2 घंटे में ले लेती हूँ। संघ के साथ (उनका ध्यान रखने में) 1½ घंटा लगता है। व्यवहार निभाना भी ज़रूरी है, वरना अंत समय भगवान का नाम सुनाने वाला नहीं मिलेगा।

आर्यिका श्री विज्ञानमति जी

कर्म और आत्मा में शक्तिशाली कौन ?
यदि एक व्यक्ति की शक्ति दस व्यक्तियों से ज्यादा हो और दूसरे व्यक्ति की शक्ति तो बहुत कम लेकिन निर्दयी/ आतंकी हो तो !
कर्म भी फल देते समय निर्दयी होते हैं। प्रायः हाहाकार मचा देते हैं।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

नारियल क्यों चढ़ाते हैं ?
आचार्य श्री विद्यासागर जी –> नारियल सिर का प्रतीक है। घमंड के समर्पण का प्रतीक।
महिलायें नारियल क्यों नहीं तोड़ती ?
महिलाओं का काम सृजन का होता है, तोड़‌फोड़ का नहीं।

मुनि श्री विनम्रसागर जी

सुख भी पीड़ा/ दुःख/ तृष्णा देता है। लगातार मिलने पर Bore होने लगते हैं, न मिलने पर दुःखी। सो सुख दुःख बराबर हुए न !
इंद्रिय सुख वासना है सुखकार की। पर इससे सुरक्षा की चिंता/विकल्प, सुरक्षा का खर्चा भी।
सुख बाह्य है, अंतरंग सुख ब्रम्ह में आचरण/ ब्रम्हचर्य से ही प्राप्त होता है।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

Archives

Archives

April 8, 2022

March 2025
M T W T F S S
 12
3456789
10111213141516
17181920212223
24252627282930
31